जय महाकाल,
रूद्र -शिव एक वैदिक देवता एवं उनके स्वरुप…..! रूद्र का वैदिक स्वरुप वर्णन…..!
रूद्र की प्रमुख वैदिक शक्ति स्वरूपों में गणना होती है, ऋग्वेद में तीन सूक्त रूद्र को उद्देशित कर पठित हैं, एवं सोम आदि देवताओं के साथ भी रूद्र का संकीर्तन प्राप्त है !
रूद्र का स्वरुप संहिता ब्रह्म्नात्मक वेद से प्रप्प्त है, , रूद्र को बारह बाहु, पुष्ट गात्र हैं,ओष्ठ सुन्दर हैं, वर्ण बभ्रु है, पिंगल है, दैदीप्यमान हैं, सहस्त्र नेत्र हैं, ग्रीवा नील हैं, परिधान चर्म है, पर्वतो पर निवास करने वाले एवं मरुतो के पिता हैं ! उमा एवं पार्वती के नाम उल्लेखित हैं स्त्री रूप में !
शतपथ ब्रह्मण में रूद्र को अग्नि भी कहा है, भव एवं शर्व ये विशेषण भी उल्लेखित हैं, शांखायन शोत्र सूत्र में” भव” एवं “शर्व” को रूद्र पुत्र भी कहा है, वाजसनेयी संहिता में अग्नि, अशनी, पशुपति, भव, शर्व, इशान, महादेव, उपदेव आदि के रूप में वर्णित है, अथर्ववेद में सौदामिनी का एवं रूद्र के बाणों का भी उल्लेख है !
रिग्वेदा में रूद्र का महा बलवान कहा है, , वेगवान एवं तरुण भी कहा है, जिनका तारुण्य स्थिर है !
रूद्र शूरों के अधिपति एवं भूलोक के ईशान स्वामी है,बुद्धिमान,परोपकारी एवं” मीढाव” अर्थात उदार कहा है.त्वरित प्रसन्न होने वाले शिव कहा है.देवो को भी रूद्र के बाणों का भय रहता है, वैदिक कर्मो में आहुति उपरांत रूद्र को भी आवश्यक भाग अवश्य वर्णित है,अर्पित किया जाता है, रूद्र पूजा आवश्यक भाग है वैदिक कर्मानुष्ठान का .!
रूद्र की स्तुति “कृशानु” एवं “धनुर्धरों ” के साथ हुई है, वेदों में अनेक स्थानों पर रूद्र के हाथो में ही वेगवान धनुष के संकेत हैं. देवताओं के उपद्रवो के उपशमन हेतु भी रूद्र की प्रार्थना की जाती है, रूद्र से उपासको को भी अनेको अपेक्षाए है…..मनुष्यों एवं पशुओ का हित. रूद्र के पास अनेको प्रकार की ओषधियाँ हैं, जिनसे वे वीरो को सजीव करते हैं वे वैध्यो में श्रेष्ठ हैं.!
रूद्र को दो विशेष विशेषण प्राप्त है जो किन्ही अन्य देवताओं को नहीं ….”जलाष” अर्थात रोग का निदान करने वाले एवं एवं “जलाषभेषज” अर्थात रोग निदान करने वाली ओषधियों के संरक्षक ! ,